Tuesday, 11 March 2025

फागुन रस छलके


आवेला बसंत पतझर के सांथ लेके,

स में झुमत रसवन्ति रात लेके,हि

या के हिलोरे हरदम बसंती बयार-

टिसेला जिया कोइली के बात लेके।

सचमुच बसंत के आवे के आहट चहू ओर देखाई देवे लागेला। हर तरफ प्रकृति अपना अंगना में लड़िका नियन ठाढ़ कइले गाछ-वृछ, पेड़-पौधा, घास-फूस के पुरान कपरा उतार के नया नेह में नहाईल, नया उमंग में मताइल आ नया रंग में रंगाइल हरियर हरियर कपरा पहिरावे के तइयारी करेले। ई नजारा देखे वाला के देखते बनेला। मन करेला कि ई दृष्य असहीं निहारत रहीं, बाकिर अइसन होला कहां। सब त महिना भर के खेल ह। एकरा अइला पर भर आंखी आदमी देखियो ना पावे जी भर के मिलियो ना पावे ताले कब दू हमनी के छोड़ के चल जाले तनिको प्रतीत ना होखे। गाछ-वृछ आपन आपनं देह पर के पुरान चोला उतार के नया चोला पहिर लेला। चिरई-चुरूंग आ माल-जाल भी आपन रोआं झार देला। चारो तरफ सरसो के पियर पियर फूल आपन पियरी से प्रकृति के सजवले लउकेला। तिसी के श्याम रंग के फूल अपना खुबसुरती से सबकर मन मोह लेला। आ मोहो काहे ना! भगवान कृष्ण भी त एही रंग के रहस जवन गोकुल में तमाम गोपियन के मन मोह लेले रहस। गहूॅं अपना गरदन में मनुष्य के मन माफिक बाली सजवले घर से बहरी निकले के तइयारी करेला।
सांचहूॅं कुछ एही तरे के सनेस लेके फागुन महिना हमनी के सोझा आ खड़ा होला। ई महिना मादकता से भरल होला। एह महिना में चिरई-चुरूंग गाछ-वृक्ष माल-जाल सब में मादकता के अंश समाहित हो जाला। त फेर भला आदमी एह से बंचित कइसे रह सकत बा। एह महिना में साठ साल के बुढ़उ बाबा से लेके सोरे साल के नवजवान तक बसंती रंग में रंगा जाले। तब त कहल जाला कि- ‘‘भर फागुन बुढ़वो देवर लागे’’। बसंती बयार अपना मादक मार से हिया हहरावेला। सबका तन मन में प्यार के मादकता उत्पन करेला। ई महिना सांचो प्यार के महिना ह।
            एकर शुरूआत हिन्दी महिना के माघ के पंचमी जवना के हमनी ‘बसंत पंचमी’ कहिले सं से शरू हो जाला। एही दिन से हमनी के भोजपुरिया माटी में फगुआ के ताल भी ठोका जाला आ ई पूरा फागुन भर चलेला। गाॅंव के बुढ़उ आ कुछ नवजवान लोग आपन गोल बना के बइठ जाले आ ढोलक झाल आ हरमुनिया के ताल पर जोगिरा आ फगुआ गावेले आ देवाल के भिती भा परदा के भीतर से दुआरी पर से झांकत कुल्ह घर के बड़ छोट लड़िका सेयान मेहरारू सुनेली। फगुआ आ जोगिरा गावे में लोग एतना मद मस्त हो जाले कि जेतना मजकुआ रिस्ता होला जवना में विशेष कर के भउजाई पर ही घंटन बइठ के गावेले आ आरा अलोता के बात भी कह देलें।
           ई महिना में सबसे अधिक वियोग भी झलकेला। जब कवनो लइकि के नया नया बियाह भइल होखे आ ओकर गवना ना भइल होखे त ओकरा पिया के दूर रहला के वियोग हिया के झकझोर देला। असहीं अगर कवनो नवही दुलहिन के पिया परदेस गइल होखस आ उ बहुत दिन से अपना धनिया के सुध ना लेले होखस आ उनका फागुन में वापस आवे के इंतजार में बइठल एगो विरहिन के व्यथा अलगे होला। जब कवनो बांस के फूनगी पर भा आम के डाली पर कवनो कोयल बोलेले त एगो बिरहीन के ओकर बोली बंदुक के गोली नियन लागेला। साॅंचो ‘‘कोयल के कूक त सारा दुनिया सुनेला बाकिर साहित्य के सुनल कुछ आउर होला। विरह बेदना में व्याकुल कवनो विरहीन के व्यथा के व्यतित करत ओह करिया कोयल के कूक खली ई कहेला कि ‘पिया हो पी कहां’।’’ ई शब्द एगो मेहरारू जवना के पति परदेस बहुत दिन से कमाए गइल बाड़े आ उ आज ले लवट के नइखन आइल सुन के अपना हिया के हिलकोरा हिये में दबा के रह जाले। तब ओकरा मूॅंह से जन कवि जमादार भाई के आवाज में निकल परेला कि-

‘‘बाबा बगइचा में कोइलर जे बोलुवे,
कि बांसवा के फुनगी पर काग।
आइल बसंत पिया नाही अइलें
कि हियरा में हुलसे ला आग।’’


होली के नाव सुन के मन में कई तरह के उमंग लहर मारे लागेला। तन में मादकता छा जाला। आँख में वासना झलके लागेला। ई त मनुष्य के बात रहल। माल जाल आं चिरई चुरूंग भी एह मादकता से बंचित ना रहस। प्रकृति के गोद में पल के बड़ा भइल गेहूँ के बाली भी आपस में हठखेली करेला। तिसी भी आपस में टकरा के झुमर गावेला। साॅंचहूँ होली के उन्माद कुछ अलग होखेला। नव विवाहित जोड़ी अपना दोस्त भा सखी सहेली से बतियावेली त ओहूमें फागुनी झलक देखाई देला। कहलो बा कि-
‘‘आज होली, काल्ह होली,
ना होली त का होली।
अंजरा होली, पंजरा होली,
अंगना होली, दुअरा होली।


       हमनी के भोजपुरिया संसकृति में होली के बहुते महत्व बा। काहे कि ई हमनी के धर्म से भी जुड़ल बा। होली से ठीक एक रात पहिले होलिका दहन होला। अइसन मान्यता बा कि भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु के पूजा करस जवन उनकर बाप हृणकष्यप के मंजुर ना रहे। तब अपना पूत्र के मारे खातिर अपना बहिन होलिका के बोलवलन आ प्रहलाद के आग में जरावे के आदेश दिहलें। होलिका जे कि आग में ना जर सकस उ मान गइली। बाकिर भगवान विष्णु के कृपा से भक्त प्रहलाद बंच गइलें आ होलिका जर गइली। भक्त प्रहलाद के बंचला के खुशी में सारा नगर उत्सव मनावे लागल आ रंग गुलाल से एक दुसरा के रंग के भाईचारा के परिचय देहल। एक बार फेर बुराई पर अच्छाई के जीत भईल। तब से होलिका दहन आ ओकरा बिहान भइला होली के त्योहार मनावल जाला।

होली के परम्परा कई युगन से चलल आवत बा। होली भगवान राम चारो भाई आ रावण भी खेलले रहे लोग। आज भी जब गाॅंव के बुढ़उ लोग फगुआ गावे बइठेला त गावेला- ‘‘सिया निकले अवधवा कि ओर कि होलिया खेले राम लाला।’’
हमनी के समाज में कईगो फगुआ गीत पारम्परिक चलल आवत बा। जवना में पहिले भगवान के उपर ही होली गीत गा के शुरू कइल जाजा। एह से दू फायदा होला एक त भगवान के सुमिरन भी हो जाला आ फाग गीत के शुरूआत हो जाला। एगो अउर फगुआ गीत के बानगी देखीं-
‘‘राम खेलस होरी लछुमन खेलस होरी,
लंका भवन में रावण खेलस होरी।’’

ई होरी गावे के सिलसिला खाली राम सिया तक ही ना बलूक गोकुल में रास लीला रचावे वाला भगवान कृष्ण आ उनकर दिवानी राधा संग कूल गोपियन पर भी जारी रहल बा। लोग एह होरी गीत के माध्यम से सभका घर में आनन्द भाव बनल रहो एकर शुभकामना भी देला। एगो झलक देखीं-
सादा आनन्द रहो एही द्वारे, मोहन खेले होरी हो,
एक ओरी खेलस किसन कन्हाई, एक ओरी राधा गोरी हो।

एह तरे से हमनी के भोजपुरिया संस्कृति अपना सब पर्व त्योहारन के हर्षोल्लास के साथे मनावेला। जवना में होली के हुड़दंग के कुछ अलगे मजा देखे के मिलेला। सबकर तन आ मन फागुन के रंग में रंगा जाला। नवकी कनिया के पति परदेस बारे। फागुन के फगुनाहटा के मार ना सहाला आ उ फागुनी रस में रसाइल रहेली । तब उनका मूंह से निकल परेला कि-
‘‘अब त घरे आजा पिया,
हमरो करेजा जुराजा पिया,
कब तले रहीं बोल अलगे अलगे
फागुन रस छलके।’’


- अभिषेक भोजपुरिया

Friday, 25 August 2023

भोजपुरी भक्ति गीत

भोजपुरी भक्ति गीत ============= 
हिया हहरत बाटे जिया छछनत बाटे 
खोजे सगरो चांद के चकोर 
भटकेलें‌ वने वने प्रभु श्रीराम चन्द्र 
कहाँ गइली सिया जी मोर 

प्राण प्यारी सिया के इच्छा पुरावे खातिर 
जंगल छान मरनी हिरण लेआवे खातिर 
खुशी के छण आइल, हाथे जब हिरण आइल 
नाही दिखस धनिया अब मोर 
भटकेलें‌ वने वने प्रभु श्रीराम चन्द्र 
कहाँ गइली सिया जी मोर.

पुछेले दौरी दौरी गाछ वृच्छ फूल से 
लहु लुहान पांव होई गइल शूल से 
आस भरल नजरी से देखतारे डगरी से 
धरती आकाश का ओर 
भटकेलें‌ वने वने प्रभु श्रीराम चन्द्र 
कहाँ गइली सिया जी मोर 

 - अभिषेक भोजपुरिया

Monday, 21 August 2023

बेरोजगार के चिट्ठी - अभिषेक भोजपुरिया

सुनो ना! तुम्हारे प्यार का नशा कोरोना वायरस से भी ज्यादा खतरनाक है। जिसका न तो कोई वस्तविक वैक्सिन बना और न ही कोई कारगर ईलाज। बावजूद तुम्हारे दिए इस बीमारी से हम खुश हैं। समय पर तेरे एहसास का आक्सीजन मिलता रहे तो दिल की धड़कन तेरी बाहों के वेंडिलेटर पर चलता रहेगा।
        हालांकि सरकार की सिरम शरीर को सफाचट करने में लगी हुई है। महँगाई के मार में मन मरुआ जा रहा है। दिन पर दिन दवाई भी अब हवाई हुए जा रहा है। मन तो बहुत है तुझे बनारस घुमाने को। परन्तु पेट्रोल अपना रोल हमारे प्यार के पटरी पर पिलर की तरह निभा रहा है। बेरोजगारी के बाजार में बैंगन की तरह हम बेहाया बने हुए हैं। मेरे रंग और सुघराई को समझ तो सब रहे हैं पर कोई अपने कराही का भर्ता बनाना नहीं चाह रहा। वो चाहें सेंटर में बैठी सेंट्रल सरकार हो या राज्य में बैठा राजा हो।

       सुनो ना! धर्म का धंधा अभी उफान पर है। बढती बेरोजागरी और खाली जेब देख कर व्याकुल मन विचलित हो रहा है। तब इस धर्म के धंधा में अंधा बन के कुद जाने को जी कर रहा है। भगवा का अगुआ बन अखबार के आईने में हम भी नजर आने लगेंगे। ललाट पर टिका व गले में गमछा होगा। हाथ के कलाई पर कलेवा बंधा होगा। पर फिर सोचते हैं कि उस वक्त तब तेरे होठ की लाली मुझे लाल‌ सलाम वाले वामी नजर आने लगेगी‌। तुझे दिया हुआ हरे रंग के शूट में तू बेरादर नजर आएगी और मेरे देश, मेरे धर्म के लिए खतरा नजर आने लगेगी। तब तुझे भी मेरे साथ कहना होगा कि 'इस देश में गर जो रहना होगा, तो जय  ...... कहना होगा।' 
        पर जैसे इन सबसे बाहर निकल अपने भारत और अपने इतिहास को मन मस्तिष्क में देख रहा हूँ तो कार्ल मार्क्स बीच में बचाव करने आ जा रहे हैं। वो बरबस ही बोल रहे हैं कि धर्म का नशा अफीम की तरह है। अब भला बताओ कि जब तुम्हारे प्यार के नशा में हम पहले से ही डूबे हैं तो ये धर्म की नशा हमें कहाँ सुट करेगी। इसलिए उस अफीम को हमें नहीं चखना जो रंगो के कारण अंगों को अलग कर रहा हो।

           अब नौकरी के लिए आस के आंगन में अंकगणित का क्लास ले रहा हूँ। बेरोजगार के ठप्पा से आजाद होना चाहता हूँ जो घर, परिवार, सामाज, सबने लगा रखा है। वो तो तुम हो जो बढती महँगाई की तरह अपना प्यार मुझ पर बढ़ाते जा रही हो और हम सरसों तेल की तरह तुम्हारे काया के कढ़ाई से भावनाओं के बदन तक लपेटाए जा रहे हैं।
         अच्छा सुनो ना! अब तो गाँव में पतझर के बाद बहार आ गये होंगे। महुआ का मादक खुशबू मन बहका रहा होगा। तब तो तुम्हे मेरी याद आती होगी। क्योंकि हमें याद है कि तुम दोपहर में बड़का गाछ के पास महुआ बिनने चली आती थी और दबे पांव पेड़ के पिछे से तुम्हे धप्पा मार के मैं डरा देता था। आम ने टिकोढ़ा ले लिए होंगे। मुझसे ढेला मार के टिकोढ़ा तोड़वाना और जब पेड़ का मालिक देख लेता तो मुझे फंसा के भाग जाना भी याद आता होगा। हम तो नहीं भूले। क्योंकि यही वो समय होता था जब हम कुछ हँस बोल बतिया लेते थे।
         खैर! अब यादों के समंदर में अंदर उतरने से दिल‌ का दर्द बढने लगेगा। इसलिए ज्ञान के गहराई में उतरने के लिए कलम को सिढ़ी बना किताबों के कुँआ में उतर जाने दो। फिर मिलेंगे हम पीसीएस के परीक्षा में। चलेंगे वहां से फिर मौर्यालोक के माॅल में। तुम काॅफी के साथ कसिदे गढ़ना और मैं चाय पर चर्चा करुँगा। 

तुम्हारा
अभिषेक भोजपुरिया 

Thursday, 17 August 2023

आजादी के लड़ाई में भोजपुरियन के जोगदान - अभिषेक भोजपुरिया

कटाना शीश ही महत्तम दान होता है,
देश के लिए मरने वाला महान होता है,
माटी के लिए जो दे दे अपनी जान -
वो आदमी नहीं, भगवान होता है।


स्वतंत्रता संग्राम‌ में जवन सपूत अपना प्राण के बाजी लगा दिहल, घोर यातना सहियो के आपन सब कुछ समर्पित कर दिहल ओह में भोजपुरी क्षेत्र आपन महत्वपूर्ण योगदान देले बा। ओइसे आजादी के कवनो क्षेत्र भाषा भा जाति विशेष के लड़ाई ना रहे। ई लड़ाई समुचे भारत जवना में अब के पाकिस्तानों के लड़ाई रहे। तब अंग्रेजन के गुलामी से रीढ़ के हड्डी नवल चल जात रहे। ओह बेरा बहुते लड़ाका के कुबत में बल त रहे बाकि एक साथे ललकार सके ओइसन संवाग ना जूट पावस। बावजूद हमनी के भोजपुरी प्रदेश के भोजपुरिया माटी के भोजपुरिया जवान हमेशा अंग्रेजन के खिलाफ शान बघारस। केहु बम बारुद गोली तोप से लड़त रहे त केहु साहित्यिक लड़ाई लड़त रहे त केहु सांस्कृतिक। हम आज बात करब आजादी के लड़ाई में भोजपुरिया के जोगदान पर।
       अस्सीयो में होखे जो जवान त बुझिह कि हवे ऊ जवान भोजपुरिया। अधिकारिक रुप से आजादी के लड़ाई के पहिला विद्रोह जवन 1857 में होत बा ओकर दुलहा निकल के एगो अस्सी बरिस के व्यक्ति आवत बा जेकर नाम ह बाबू वीर कुँवर सिंह। आरा के बीर बाबू कुँवर सिंह जब जब पता चलल कि अंग्रेजन से युद्ध छीड़ चुकल बा आ उनकर रियासत पर हमला होत बा तब ऊ अपना उम्र के अंतीम पड़ाव कीओर बढ़ चलल रहस। बाकि ई खबर मिलला के बाद आपन आदमकद तलवार के मयान में से निकाल के रणभूमि कें कुद चललें। अनगीनत अंग्रेज सिपाहियन के धराशायी करत आगे बढल जात रहस ताले ऊ गंगा के क्षेत्र में घेरा गइलें।‌ तब अंग्रेज उनका के गोली मरलें जवन कि उनका हाथ में लागल। ईलाज खातिर बाचे के कवनो रास्ता ना देखत आपन हाथ काट के गंगा में बहवा देलें। अइसन वीरता के प्रतीक बाबू वीर कुँवर सिंह भोजपुरिया जवान रहीं। जबकि उहां के भाई अमर सिंह से पटना से विद्रोही लो जा के मिलल।

           आजादी के लड़ाई के बात होखे आ मंगल पांडेय के बात ना होखे त लड़ाई पूरे ना होई। भोजपुरी जनपद बलिया के नगवां गाँव के रहनिहार मंगल पांडेय जी ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल इंफेन्ट्री के सिपाही रहीं। 1857 क्रांति के नायक के रुप में जाने जाए वाला पांडेय जी अंग्रेजी हुकूमत के सिपाही रहला के बादो‌ ओकरा खिलाफ जंग छेड़ दिहनीं। कारण कि कारतुस में सुअर भा गाय के चर्बी के प्रयोग रहे।

        बलिया से निकल के आगे बढीं त गोरखपुर जिला स्थित चौरी चौरा कांड के भला के भुला सकत बा जहां असहयोग आंदोलन में भाग ले रहल लोग अंग्रेजन के पुलिस थाना पर हजारन से उपर लोग हमला कर दिहल आ थाना में आग लगा दिहल। तब गाँधी जी आपन असहयोग आंदोलन से पिछे हटल रहस जवना के लोग विरोध कइल। एने चौरी चौरा कांड में पकड़ाइल लोग के मुकदमा पंडित मदन मोहम मालवीय जी लड़लें जवना में 151 लोग के बाहर निकाल लिहलें बाकि 19 लोग के फांसी के सजा हो गइल। जवना में विक्रम, दुदही, भगवान, अब्दुल्ला, काली चरण, लौटी, मेघु अली, लाल मुहम्मद, मादेव, रघुवीर, नजर अली, रामरुप, रामलगन, रुदाली, मोहन, सहदेव, श्याम सुंदर, संपत आ सीताराम के नाम आदर सहित लियाई। एह लो के इयाद में चौरी चौरा स्मारक बनल बा जहां सबके नाम अंकित बा। चौरी चौरा कांड पर सुभाषचंद्र कुशवाहा के किताब बहुत जानकारी लायक बा जवना में कि बहुत सारा तथ्य उहां के सामने ले आइल बानीं।
      आजादी के लड़ाई में सीवान जिला तत्कालीन सारण जिला के भला के भुलाई जहां से देश रत्न डाॅ० राजेन्द्र बाबु आपन सर्वस्व जीवन लगा दिहनीं। भारत के आजादी मिलला के बाद संविधान निर्माण में भूमिका निभवनी आ देश के पहिला राष्ट्रपति होखे के गौरव प्राप्त कइनीं।
           चललवलस जे चरखा अपनवलस जे खादी,
           ओह गाँधी के साथ देलस, भोजपुरिया वादी।


      गाँधी जी हमनी के समग्र भारत के आजादी के दुलहा रहीं। उहां के साथे असंख्य आजादी के दीवाना लोग सहबलिया बनल रहे। बाकि ओह गाँधी जी के आजादी खातिर बारात निकाले के जब जरुरत महसूस भइल त उहां के भोजपुरी प्रदेश बिहार के चम्पारण के चुननीं। उहों के पता रहे कि ई अइसन माटी ह जवना के धूरा में खाली विद्वान ना बलशालियो पैदा होलें जवन दुश्मन के धोबिया पछाड़ देवे में कहीं से पीछा ना परिहें। उहांके आजादी के लड़ाई के जवन यात्रा चम्पारण से शुरु कइनीं ओमें मय चंपारण के भोजपुरिया बाराती बन के उहां के पीछे पीछे चल दिहलें।‌ केहू गाँधी जी के करीबी बनल त कुछ लोग समर्थक। गाँधी जी के साथे चंपारण आंदोलन में अहम भूमिका निभावे में जवन एगो प्रमुख नाम आवेला ऊ बा पीर मोहम्मद अंसारी‌ जी के। उहां के एगो शिक्षक आ पत्रकार रहीं। उहां के शोषण आ जुल्म के खिलाफ हमेशा लिखीं‌। कयगो झूंठा मुकदमा में जेल तक के सफर तय कइनीं। चम्पारण के बात आवे त राजकुमार शुक्ल जी के नाम ना भुलाईल जा सके। जे अपना अनवरत प्रयास से चम्पारण क्षेत्र में नील के खेती बंद करावल। चम्पारणे के लोजराज सिंह एगो अइसन नाम‌ रहे जेकरा कारण पिपरा आ तुरकौलिया के निलही कोठी के हजारन किसान आंदोलन पर उतर गइलें। 7 जून 1929 के मौलानिया नामक स्थान में डकैती भइल जवना में योगेन्द्र शुक्ल के मुख्य अभियुक्त बनावल गइल रहे। सारण पुलिस 11 जून 1930 के गिरफ्तार कर के तिरहुत संयत्र केस चलल। एकरा अलावे लौरिया प्रखंड क्षेत्र के साठी के धमौरा गांव निवासी रानी कुंअर जी,  गौनाहा प्रखंड क्षेत्र के श्रीरामपुर के रहे वाला कमल प्रसाद के नाम  सेनानियन में शामिल बा। साठी के परोहा के दुर्गा मिश्र के नाम ना भुलाईल जा सके जेकरा के गाँधी जी 'अन्नदाता' के उपाधि से नवजले रहस। काहे के उहां के अंग्रेजन से बगावत कर के गाँधी जी के सेनानियन के भोजन उपलब्ध करवले रहीं।
        भोजपुरी प्रदेश के सारण जिला से अनगिनत भोजपुरिया जवान आपन प्राण के आहुति देले रहस। सारण जिला के जेतना सांस्कृतिक पृष्ठभूमि गौरवशाली बा, ओतने एकर राजनैतिक चेतना ऐतिहासिक बा। इहां के अनेक अमर शहीद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बलिवेदी पर आपन प्राण न्योछावर कर देले बा। छपरा के मुहम्मद हुसैन खां 1857 के क्रांति के नतृत्व कइले रहस। बिहार प्रांतीय सम्मेलन कमिटी के सदस्य मजहरुल हक साहब के नाम आदर सहित लियाई। इहां के दिघा में सदाकत आश्रम के स्थापना करवले रहीं। हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी जवना के स्थापना भगत सिंह आ चन्द्रशेखर आजाद जइसन वीर कइले रहे लो। ओकर छपरा केन्द्र के नेता रामदेनी सिंह जी रहनीं। इहां के हाजीपुर में डांक थैला लूटे के कोशिश कइनीं जवना में मुकदमा चला के फांसी दियाइल। राहुल सांकृत्यायन जी असहयोग आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभवले रहीं। सारण के ढोढ़स्थान क्षेत्र के जुआफर गाँव के रहे वाला शहीद सुबलाल प्रसाद के नाम स्वर्ण अक्षर में अंकीत बा। सारण गजेटियर के अनुसार 1857 के सिपाही विद्रोह के वक्त कुँअर सिंह के आगमन एह क्षेत्र में भइल रहे आ ताजपुर थाना के लोग फूंक देले रहे। मध्यमवर्गीय परिवार से आवे वाला नौजवान तब बक्सर आ पटना के जेल भर देले रहे लो। अंग्रेजन के बेत के मार सहल लो आ बर्फ के सिली पर सुतल लो। ओह नामन में पंडितपुर गाँव निवासी श्री राम बिहारी शुक्ल, यदुनंदन पांडेय ब्रेभ जी, सेंदुआर गाँव निवासी सीताराम सिंह, सारण गाँव निवासी सरयु प्रसाद गुप्ता, दयालपुर निवासी केदार ब्रह्मचारी, वैद्यनाथ प्रसाद श्रीवास्तव, दीनानाथ मिश्र, पंडितपुर निवासी धनेश मिश्र, भटवलिया गाँव निवासी राम सेवक प्रसाद उर्फ मुशी जी समेत अनेक सेनानी रहे जे आजादी में आपन योगदान दिहल।
      सविनय अवज्ञा आंदोलन के दरमियान सारण आ चंपारण में 15 अप्रैल 1930 के नमक बना के नमक कानून के तुड़े के काम भइल जवना में चम्परण में एकर नेतृत्व विपिन बिहारी वर्मा, शिवधारी पांडेय, रामदास प्रसाद, जय नारायण प्रसाद आदि लोग गिरफ्तारी देले रहे। उहंवे सारण में गोरियाकोठी, बरेजा, हाजीपुर में नमक कानून तुड़ाइल जवना के नेतृत्व श्री नारायण प्रसाद सिंह, भरत मिश्र, गिरिस तिवारी आ बबन सिंह कइनीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान छपरा के कारागार में कैदियन द्वारा अंग्रेजी कपड़ा के जगहा भारतीय कपड़ा के मांग खातिर नंगा बदन हड़ताल भइल रहे। 1942 में हाजारीबाग जेल से जय प्रकाश नारायण आ उनकर साथी लोग भागल आ नेपाल के तराई में छापामार युद्ध के प्रशिक्षण खातिर शिवर खोलल लोग।
       भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भोजपुरी क्षेत्र में महिला लोग के भूमिका देखल जाव त मुख्य रुप से प्रभावती देवी पति जय प्रकाश नारायण जी गाँधी जे के हमेशा सहयोगी रहली। उहंवे राजवंशी देवी पति डाॅ० राजेन्द्र प्रसाद जी आ उनकर साथी चन्द्रवाती देवी, डाॅ० राजेन्द्र बाबु के बहिन भगवती देवी समेत सात गो आउर महिला के पटना में 26 जनवरी के झंडा फहरावे के कोशिश में गिरफ्तार कर के डेढ साल के सजा दियाइल रहे। 19 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो अंदोलन के दरमियान छपरा में एगो विशाल जनसभा भइल जवना के अध्यक्षता शांति देवी कइले रहस। उहंवे दिघवारा प्रखंड में झंडा फहरावे के आरोप में मलखा चौक के स्व० राम विनोद सिंह के दूगो बेटी शारदा आ सरस्वती के चौदह आ एगारह बरिस के सजा भइल।
           गोपालगंज के फतेह बहादुर जी के आपन एगो लमहर इतिहास बा। बंगाल, बिहार आ उड़िसा के दिवानी 1765 में जब शाह आलम अंग्रेजन के संउपलें तब सारण के कलक्टर तत्कालीन हुस्सेपुर राज (अब गोपालगंज जिला के एगो गांव) के महाराज फतेह बहादुर साही से राजस्व के मांग कइलें आ अंग्रेजन के अधीनता स्वीकार करे के बात कइलें त शाही जी इनकार कर दिहलें। एकरा बाद लगभग बाइस तेइस बरिस ले अंग्रेज से लड़ाई चलल।
        एकरा अलावे भोजपुरी के बहुत क्षेत्र बा जवना में अनेकानेक भोजपुरिया लोग आजादी के लड़ाई में आपन महत्ती भूमिका निभावल। एह तरे से आजादी के लड़ाई में भोजपुरियन के जोगदान के इयाद कइल जा सकत बा।

ग्राम - भटवलिया, जनता बाजार, छपरा बिहार
       
        
      

Tuesday, 11 October 2011

तुमही सो गये दास्तां कहते - कहते

बरे गौड़ से सुनता था जमाना जिसको,
आज वही सो गये दास्तां कहते-कहते !
गज़ल के दुनिया के बेताज़ बदशाह और हिन्दी उर्दू पंजाबी नेपाली गज़लन के दुलहा काहाए वाला अपने आप में लाजाबाब व्यक्तित्व साफ आ स्वक्ष छवी के मालिक जे खाली भारत में ही ना वल्कि पुरे दुनिया मे गजल प्रेमी लोग के दिल पर राज करे वाला गज़ल सम्राट श्री जगजीत सिंह जी के निधन के खबर आज हम आखबार के माध्यम से पढनी ह ! ई खबर सुन के आत्मा रो देलस ! हम उहां के आत्मा के शांति खातिर ईश्वर से दुआ करब कि उहां के गज़ल से भरल ज़न्नत मे जगह मिलो !

Friday, 23 September 2011

कवना बात के सजा दिहल जा रहल बा माई-बाप के

माता पिता के अवहेलना कतई जाएज नईखे, ई बात पता ना आज के संतान काहे नइखे समझ पावत ! काल्ह हम अखबार मे पढनी कि कोर्ट के फैसला आइल ह कि माता-पिता के अगर अवहेलना भइल त सजाय होई ! ई त सुने मे बढिया लागल बाकिर एपर केतना अमल होई ई देखे वाला बात होई !
केतना अफसोस के बात बा कि जवना देश मे श्रवन कुमार जईसन पुत्र होत रहल ओही देश मे अब अइसनो बेटा – बेटी हो रहल बा जवन अपना माई-बाप के घर से निकाल बाहर करत बा दर-दर के ठोकर खाए खातिर ! हम पटना मे रहिले आ पटना के गाधी मैदान के चारो ओर भा स्टेशन के पास भा रोड पर अईसन हाल मे देखे के मिलत बा लोग कि खुद के भी शर्मिन्दा महसुश करे के परत बा ! जे आखिर एह लोग के का गलती बा ! ओमे केहू के बेटा मैनेजर बा त केहू के बेटा इंजिनियर बा ! सब लोग कही ना कही सेट बा !
अगर एह हाल खातिर गरिबि जिम्मेवार रहित त कुछ सोचल जा सकत रल ! लेकिन एतनो ना कि ओह माई-बाप के घर से निकाल देहल जाव ! काहे कि घर मे अगर बेटा बेटी के खाए के, रहे के घर बा माई बाप खातिर ना !
हालांकि बहुत हद तक पतोह लोग के भी हाथ रहेला ! माई-बाप के घर से निकाले मे ! उ लोग अपना ससुर आ सास के बुढा भईला पर कुछो ना समझेला आ जब ना तब ओकरा के उल्टा सिधा बोल के झरहेटत रहेला लोग ! उ सास- ससुर जतना हद तक सहे लायेक होला सहेला लोग आ ना त आपन इज्जत गुने आपन घर दुआर छोड़ द्स जाये पर विवश हो जाला लोग !
सोचे वाला बात ई होला कि एह परिस्थिति मे बेटा भी अपना माई-बाप के साथ ना दे के अपना मेहरारु के ही साथ देला लोग ! उ लोग भुला जाला कि इहे माई- बाप बचपन से पाल पोल के बाड़ा कईल जे अंगुरी पकर के चले के सिखवलस ओकरा के आज 1 टाईम के खाना तक खिला सकत ? उहे माई – बाप जे बचपन मे जब उ जाहा ताहा भागल फिरस त पीछा-पीछा घुम-घुम के खियावे लोग ! आज उहे बेटा अपना पत्नि के कहल मे रहत बा लोग आ माई-बाप के दुत्कार देत बा लोग ! पतोह लोग ई भुला जात बा कि उहो लोग कहियो बुढा होई ! आ ओहु लोग के बेटा पतोह घर से निकले पर मजबूर कर सकत बा !